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अध्याय 18 ,श्लोक 77



श्लोक

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः । विस्मयो मे महान् राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ॥77॥

तत् च संस्मृत्य संस्मृत्य रुपम् अति अद्भुतम् हरेः । विस्मयः मे महान राजन हृष्यामि च पुनःपुनः ।। ७७ ।।

शब्दार्थ

(च) और (मे) हे मेरे (महान) महान (राजन्) राजा (धृतराष्ट्र) (हरे:) ईश्वर के द्वारा ( दिखाए जाने वाले) (तत्) उस (अति) अत्यधिक (अद्भुतम्) अदभुत (च) और (विस्मय:) आश्चर्यचकित कर देने वाले (रुपम्) दिव्य वस्तुओं को (संस्मृत्य) याद करता हूँ तो (पुन: पुनः) बार बार (हृष्यामि) मैं अत्यधिक प्रसन्न होता हूँ।

अनुवाद

और हे मेरे महान राजा (धृतराष्ट्र), ईश्वर के द्वारा (दिखाए जाने वाले) उस अत्यधिक अद्भुत और आश्चर्यचकित कर देने वाले दिव्य वस्तुओं को याद करता हूँ, तो बार बार मैं अत्यधिक प्रसन्न होता हूँ।