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अध्याय 18 ,श्लोक 8



श्लोक

दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत् । स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत् ॥8॥

दुःखम् इति एवं यत् कर्म काय क्लेश भयात्
त्यजेत् ।
सः कृत्वा राजसम् त्यागम् न एव त्याग फलम् लभेत् ।। ८ ।।

शब्दार्थ

(एरां) नि:संदेह (यत) जो (कर्म) कर्म (काय क्लेश) शारीरिक असुविधा (दुःखम्) (या) पीड़ा (इति) इत्यादि के (भयात्) भय से (त्यजेत्) छोड़ दिया जाए (स) वह (त्यागम्) त्याग (राजसम्) रजो गुण (कृत्वा) के कारण (से समझा जाएगा) (एव त्याग) इस प्रकार के त्याग का (फलम्) फल भी (न) नहीं (लभेत) मिलता है।

अनुवाद

निःसंदेह जो कर्म शारीरिक असुविधा या पीड़ा इत्यादि के भय से छोड़ दिया जाए वह त्याग रजो गुण के कारण समझा जाएगा। इस प्रकार के त्याग का फल भी नहीं मिलता है। (यदि किसी का मन शानदार भोजन खाने का करे और मोटापे और बीमारी के भय से वह इसे त्याग दे और साधारण जीवन शैली अपनाए तो यह उसका त्याग नहीं होगा।)