Home Chapters About



अध्याय 2 ,श्लोक 12



श्लोक

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः: सर्वे वयमतः परम् ॥12॥

न तु एव अहम् जातु न आसम् न त्वम् न इमे जन अधिपाः । न च एव न भविष्यामः सर्वे वयम् अतः परम् ।।१२।।

शब्दार्थ

(जातु) (कोई ऐसा) काल (न) न ( था जब ) (अहम) मैं (धर्म का उपदेश देने वाला) (न) न (आसम्) रहा हूँ (न) (और ऐसा कोई काल) न (था) (त्वम्) (जब) तुम (जैसे धर्म स्थापना करने वाले न रहे हों) (न) (और कोई ऐसा काल) न ( था जब ) ( जन अधिपाः) (मानवजाति पर अत्याचार करने वाले यह ) राजा लोग (न थे) (अतःपरम्) और इसके आगे (भविष्यामः) भविष्य काल में भी (सर्वे वयम्) (ऐसा कोई युग न होगा जब) हम सब (न रहेंगे।)

अनुवाद

(कोई ऐसा) काल न था, जब मैं (धर्म का उपदेश देने वाला) न रहा हूँ। और ऐसा कोई काल न था जब तुम (जैसे धर्म स्थापना करने वाले) न रहे हो। और कोई ऐसा काल न था, जब मानवजाति पर वाले यह राजा लोग ना थे। और इसके आगे भविष्य काल में भी ऐसा कोई युग ना होगा जब हम सब न रहेंगे।

नोट

इस श्लोक का अर्थ है की ईश्वर के दिव्य ज्ञान का प्रचार करने वाले ज्ञानी । सत्य की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले पवित्र व्यक्ति। और मानवजाति पर अत्याचार करने वाले दृष्ट सत्ताधारी, सदैव समाज में रहेंगे, और यह सत्य और असत्य का महाभारत जैसा हर युग में लड़ा जा