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अध्याय 2 ,श्लोक 13



श्लोक

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥

देहिनः अस्मिन् यथा देहे कौमारम् यौवनम् जरा। तथा देह-अन्तर प्राप्तिः धीरः तत्र न मुह्यति ।।१३।।

शब्दार्थ

( देहिन) देहधारी (अस्मिन्) इस मनुष्य को ( यथा) जैसे (कौमारम्) बालकपन में (यौवनम्) जवानी में (जरा) और बुढ़ापे में (देहे) एक अलग शरीर मिलता है; (तथा) ऐसे ही (देह अन्तर) देह के अन्दर जो रुह है, उसे भी (प्राप्तिः) मृत्यु के बाद (स्वर्ग लोक में) एक नया शरीर प्राप्त होता है। (तत्र) इसलिए ( धीरः) ज्ञानी लोग ( मृत्यु के विषय में) (मुह्यति) भ्रम में (न) नहीं रहते।

अनुवाद

देहधारी इस मनुष्य को जैसे बालकपन में, जवानी में और बुढ़ापे में एक अलग शरीर मिलता है। ऐसे ही देह के अन्दर जो रह है, उसे भी मृत्यु के बाद (स्वर्ग लोक में) एक नया शरीर प्राप्त होता हैं। इसलिए ज्ञानी लोग (मृत्यु के विषय में) भ्रम में नहीं रहते।

नोट

अथर्ववेद में एक श्लोक इस प्रकार है, अनस्था: पूता: पवनेन शुद्धाः शुचयः शुचिमपि यन्ति लोकम् । नैषां शिश्नं प्र दहति जातवेदाः स्वर्गेलोके बहु स्त्रेणमेषाम् ।। (अथर्ववेद कांड-४, सुक्त- ३४, मंत्र-२) पवित्र करने वालों के द्वारा पवित्र होकर ऐसे शरीर के साथ जिसमें हड्डियाँ नही होंगी, वह प्रकाशित होकर स्वर्ग लोक में पहुँचते हैं। उनके शरीर को अग्नि नहीं जलाती है। स्वर्ग लोक में उनके लिए बहुत आनंद है। यह मंत्र सिद्ध करता है कि रुह को मृत्यू के बाद नया शरीर मिलेगा।