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अध्याय 2 ,श्लोक 15



श्लोक

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।15।।

यम् हि न व्यथयन्ति एते पुरुषम् पुरुष ऋषभ । सम दुःख सुखम् धीरम् सः अमृतत्वाय कल्पते ।। १५ ।।

शब्दार्थ

( पुरुष ऋषभ) हे पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ अर्जुन (पुरुषम् ) जो व्यक्ती (व्यथयन्ति) परेशान (न) नहीं होता और (दुःख) दुःख (सुखम् ) सुख में (सम) एक समान रहता है। (सः) ऐसा ही व्यक्ति (कल्पते) योग्य है (अमृतत्वाय) स्वर्ग का जहाँ मृत्यु नहीं ।

अनुवाद

हे पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ अर्जुन, जो व्यक्ति परेशान नहीं होता और दुःख-सुख में एक समान रहता है। ऐसा ही व्यक्ति योग्य है स्वर्ग का, जहाँ मृत्यु नहीं ।

नोट

पवित्र कुरआन के सूरे नं. १०३ इस प्रकार है। “ज़माने की क़सम। इन्सान वास्तव में घाटे में है। सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म करते रहे और एक दूसरे को सत्य के मार्ग का उपदेश देते रहे और संयम बरतने का (सब्र करने का) आदेश देते रहे।” (पवित्र कुरआन सूरे अल असर नं. १०३, आयत नं. १-३)वह ईश्वर अविनाशी है। जिसके कारण इस सारे विश्व का अस्तित्व है। उस ईश्वर का विनाश कोई नहीं कर सकता है।इस सारे विश्व का (ततम्) अस्तित्व हैं। (अस्य) उस ईश्वर का (विनाशम) विनाश ( न कश्चित) कोई नहीं (कर्तुम अर्हति) कर सकता है।