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अध्याय 2 ,श्लोक 16



श्लोक

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥16॥

न असतः विद्यते भावः न अभावः विद्यते सतः। उभयोः अपि दृष्टः अन्तः तु अनयोः तत्त्व दर्शिभिः ।। १६ ।।

शब्दार्थ

(असतः) (यह संसार और मनुष्य का शरीर ) यह अस्थायी हैं। (भावः विद्यते) किन्तु हम इन्हें देख सकते है। (सतः) (ईश्वर और मृत्यू के बाद का जीवन) सत्य है। (अभावः विद्यते) किन्तु हम उन्हें नहीं देख सकते हैं। ( तु) परंतु (उभयो) यह दोनों (न) एक समान नहीं है। (अपि) नि:संदेह ( अनयोः) इनके बारे में (तत्व) सत्य और तथ्य (अन्तः) और महत्त्व (दर्शिभि) एक ज्ञानी (तत्वदर्शी) (दृष्ट) ही देख सकता है।

अनुवाद

(यह संसार और मनुष्य का शरीर अस्थायी यह हैं) किन्तु हम इन्हें देख सकते (ईश्वर और मृत्यु ( के बाद का जीवन) सत्य है, किन्तु हम उन्हें नहीं देख सकते हैं। परंतु यह दोनों एक समान नहीं हैं। नि:संदेह इनके बारे में सत्य, तथ्य और महत्त्व ( Concluding position) एक ज्ञानी (तत्वदर्शी) ही देख सकता है |