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अध्याय 2 ,श्लोक 19



श्लोक

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् । उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ 19||

यः एनम् वेत्ति हन्तारम् यः च एनम् मन्यते हतम् । उबौ तौ न विजानीतः न अयम् हन्ति न हन्यते ।। १९ ।।

शब्दार्थ

(य) जो मनुष्य ( एवम् ) इस (अविनाशी रुह ) को (हन्तारम्) मारने वाली (वेत्ति) मानता है (च) और (य) जो मनुष्य (एनम्) इस (रुह को) (हतम्) मरने वाली मानता है (उभौ) यह दोनों

अनुवाद

जो मनुष्य इस ( अविनाशी रुह ) को मारने वाली मानता है। और जो मनुष्य इस (रुह घ) मरने

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने फरिश्तों से कहा कि, “जब मैं अपनी रुह में से आदम में रुह को फूँकू (और जब आदम जीवित हो जाएँ), तो तुम आदम को सजदा करना।” (सूरे नं. १५, आयत नं. २९) अर्थात यह रुह ही है जिसके कारण मनुष्य जीवित है। और इसी कारण इसमें विवेक है। रुह, आत्मा, के बारे में अधिक जानकारी के लिए नोट नं. N-2 पढ़िए। और प्राणपुराना शरीर त्याग कर नया शरीर दूसरे लोक में धारण करती है। नोट:- मृत्यु के बाद के जीवन को समझने के लिए नोट नं N-4 पढ़िए जो अन्य लोक से सम्बंधित है। शरीर ( विहाय ) त्याग कर ( नवानि) नया (देही) शरीर (अन्यानि) दूसरे लोक में (संयाति) धारण करती है।