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अध्याय 2 ,श्लोक 2



श्लोक

श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2।।

श्रीभगवान उवाच
कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् । अनार्य जुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्ति करम् अर्जुन ॥२॥

शब्दार्थ

( श्रीभगवान उवाच) ईश्वर ने कहा, (विषमे) इस कठीन समय में (त्वा) तुम्हारे (मन में ) (इदम) यह (कश्मलम्) कायरतापूर्वक (निश्चय) (कृत) कहाँ से ( समुपस्थितम् ) आया? (अर्जुन) हे अर्जुन (अनार्य) अज्ञानतापूर्वक (जुष्टम्) (कर्म) कदम (अस्वर्ग्यम) स्वर्ग की तरफ नहीं ले जाते (बल्कि) (अकीर्ति करम्) अपमानकारक होते हैं।

अनुवाद

इस कठीन समय में तुम्हारे (मन में) यह कायरतापूर्वक (निश्चय) कहाँ से आया? हे अर्जुन! अज्ञानतापूर्वक कदम (कर्म) स्वर्ग की तरफ नहीं ले जाते, (बल्कि) अपमानकारक होते हैं।