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अध्याय 2 ,श्लोक 21



श्लोक

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥21॥

वेद अविनाशिनम् नित्यम् यः एनम् अजम्
अव्ययम् । कथम् सः पुरुषः पार्थ कम् घातयति हन्ति कम् ।।२१।।

शब्दार्थ

(यः) जो मनुष्य (वेद) जानता है कि (एनम् ) यह ( रह) (अविनाशिनम् ) अविनाशि है (नित्यम्) अनन्त है (अजम्) अजन्मी है (अव्ययम्) अमर है (सः) वह (पुरुषः) पुरुष (कयम्) कैसे (कम्) किसी को (हन्ति) मार सकता है। (कम्) (या कैसे) किसी का (घातयति) वध करवा सकता है।

अनुवाद

जो मनुष्य जानता है कि यह (रुह) अविनाशि है, अनन्त है, अजन्मी अमर है, वह पुरुष कैसे किसी को मार सकता है। (या कैसे) किसी का वध करवा सकता है।