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अध्याय 2 ,श्लोक 29



श्लोक

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-माश्चर्यवद्वदति तथैव
चान्यः ।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ।।29।।

आश्चर्यवत् पश्यति कश्चित् एनम् आश्चर्यवत् वदति तथा एव च अन्यः ।
आश्चर्यवत् च एनम् अन्यः शृणोति श्रुत्वा अपि एनम् वेद न च एव कश्चित् ।।२९।।

शब्दार्थ

(कश्चित) कोई ( एनम् ) इस (रुह ) को (आश्चर्यवत्) आश्चर्य की तरह ( पश्यति ) देखता है। (च) और (तथा ) वैसे (एव) ही अन्य दुसरे लोग इसका (आश्चर्यवत्) आश्चर्य की तरह ( वदति) वर्णन करते हैं। (च) तथा (अन्यः) अन्य लोग (एनम्) इस (रुह) को (आश्चर्यवत्) आश्चर्य की तरह (श्रुणोति) सुनते हैं। (च) और (एव) सच तो यह है की कुछ लोग (एनम्) इस (रुह) के बारे में (श्रुत्वा) सुनकर (अपि) भी (कश्चित) कुछ (न) नहीं (वेद) समझ पाते हैं।

अनुवाद

कोई इस (रुह) को आश्चर्य की तरह देखता है। और वैसे ही दुसरे लोग इसका आश्चर्य की तरह वर्णन करते हैं। तथा अन्य लोग इस (रुह) को आश्चर्य की तरह सुनते हैं और सच तो यह है कि कुछ लोग इस (रुह) के बारे में सुनकर भी कुछ में नहीं समझ पाते हैं।