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अध्याय 2 ,श्लोक 32



श्लोक

यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥32॥

यदृच्छया च उपपन्नम् स्वर्ग द्वारम् अपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्तेयुद्धम् ईदृशम् ।।३२।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन ( यदृच्छया) अपने आप ( ईदृशम ) इस प्रकार (युद्धम् ) युद्ध का ( उपपन्नम् ) अवसर ( क्षत्रियाः) क्षत्रिय को मिलना (सुखिनः) बड़े सुख (खुशी) की बात है। (च) और यह अवसर (स्वर्ग) स्वर्ग का (अपावृतम्) खुला हुआ (द्वारम) द्वार है।

अनुवाद

हे अर्जुन! अपने आप इस प्रकार युद्ध का अवसर क्षत्रिय को मिलना बड़े सुख की बात है और यह अवसर स्वर्ग का खुला हुआ द्वार है।