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अध्याय 2 ,श्लोक 41



श्लोक

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥

व्यवसाय आत्मिका बुद्धिः एका इह कुरुनन्दन । बहुशाखाः हि अनन्ताः च बुद्धयः अव्यवसायिनाम् ।।४१।।

शब्दार्थ

(कुरुनन्दन ) हे अर्जुन! इस धरती पर ( आत्मिका) जिन मनुष्यों के (बुद्धि) सोचविचार या समझ (व्यवसाय) दृढ़ स्थिर स्पष्ट होते हैं। (एका) वह एक (ईश्वर में विश्वास रखते हैं) (च) और (हि) नि:संदेह (बुद्धयः) जिनके सोचवीर या समझ (अव्यवसायिनाम्) दृढ या स्पष्ट या स्थिर नहीं हैं। (अनन्ताः ) वह अनंत (वस्तु या शक्ति की प्रार्थना करते हैं) (बहुशाखा:) और अलग-अलग मार्ग पर चलते हैं।

अनुवाद

हे अर्जुन! इस धरती पर जिन मनुष्यों के सोच विचार या समझ दृढ़, स्थिर, स्पष्ट होते हैं। वह एक (ईश्वर में विश्वास रखते हैं) और नि:संदेह, जिनके सोच-विचार या समझ दृढ या स्पष्ट या स्थिर नहीं है, वह अनंत (वस्तु या शक्ति की प्रार्थना करते हैं) और अलग-अलग मार्ग पर चलते हैं।