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अध्याय 2 ,श्लोक 42



श्लोक

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥42॥

याम् इमाम् पुष्पिताम् वाचम् प्रवदन्ति अविपश्चितः । वेद-वाद - रताः पार्थ न अन्यत् अस्ति इति वादिनः ।।४२।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन (याम्) यह ( इमाम) सब (अविपश्चितः) अज्ञानी और (पुष्पिताम् ) दिखावा करने वाले लोग ( वाचम प्रवदन्ति ) केवल बातें करते हैं। (वेद बाद) और वेदों के उपदेश की आलोचना करने में ( रताः) व्यस्तरहते हैं। (वादिनः) इनका लक्ष्य (अन्यत्) इसके अतिरिक्त (न) और कुछ नहीं होता (अज्ञानी पुरुषों के लक्ष्य के बारे में निम्नलिखित श्लोक है)

अनुवाद

हे अर्जुन! यह सब अज्ञानी और दिखावा करनेवाले लोग केवल बातें करते हैं। और वेदो के उपदेश की आलोचना करने में व्यस्त रहते हैं। इनका लक्ष्य इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होता (अज्ञानी पुरुषों के लक्ष्य के बारे में निम्नलिखित श्लोक है।)