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अध्याय 2 ,श्लोक 43



श्लोक

कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥

काम-आत्मानः स्वर्गपराः जन्म-कर्म-फल-प्रदाम् क्रिया-विशेष बहुलाम् भोग ऐश्वर्य गतिम् प्रति ।।४३ ।।

शब्दार्थ

(काम-आत्मान) मन को आनन्द देने वाले कर्म में व्यस्त रहना । (स्वर्गपराः) (सत्कर्म न करने के बावजूद) मृत्यु के बाद स्वर्ग में आराम वाले जीवन की आशा करना। (जन्म-कर्म-फल प्रदाम् ) केवल वह कर्म करना जो इस जीवन में अच्छा फल दे और मृत्यु के बाद अच्छा जीवन दे। (क्रिया-विशेष) केवल वही कर्म करना जो ईश्वर को प्रसन्न करने से अधिक हमारे अपने मन को प्रसन्न करता है। (भोग) आनंद (बहुलाम् ) सत्ता (ऐश्वर्य) असीम धन और समृद्धि (प्रति) के लिए सदा ( गतिम्) प्रयास करते रहना।

अनुवाद

मन को आनन्द देने वाले कर्म में व्यस्त रहना। (सत्कर्म न करने के बावजूद) मृत्यु के बाद स्वर्ग में आराम वाले जीवन की आशा करना। केवल वह कर्म करना जो इस जीवन में अच्छा फल दे और मृत्यु के बाद अच्छा जीवन दे | केवल वही कर्म करना जो ईश्वर को प्रसन्न करने से अधिक हमारे अपने मन को प्रसन्न करता है। आनंद, सत्ता, असीम धन, और समृद्धि के लिए सदा प्रयास करते रहना।