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अध्याय 2 ,श्लोक 44



श्लोक

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥44॥

भोग ऐश्वर्य प्रसक्तानाम् तया अपहृत-चेतसाम् । व्यवसाय आत्मिका: बुद्धिः समाधौ न विधीयते ।।४४ ।।

शब्दार्थ

(भोग) जो आनंद और (ऐश्वर्य) असीम धन और समृद्धी के लिए (प्रसक्तानाम् ) निरंतर प्रयास करते रहते हैं। (तया) इस प्रकार के विचार और प्रयास के कारण (चेतसाम) उनके विचार और बुद्धि (अपहृत) उलझ जाती हैं। (न) (इस कारण उनके पास ऐसे कोई कर्म नहीं होते जो) (समाधौ) जो ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए (व्यवसाय - आत्मिका-बुद्धि) दृढ संकल्प के साथ मन और बुद्धि से किया हो।

अनुवाद

जो आनंद और असीम धन और समृद्धी के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं। इस प्रकार से विचार और प्रयास के कारण उनके विचार और बुद्धि उलझ जाती है। (इस कारण उनके पास ऐसे कोई कर्म) नहीं होते जो ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए दृढ संकल्प के साथ मन और बुद्धि से किया हो।

नोट

जो व्यक्ति शीघ्र प्राप्त होने वाले (सांसारिक सुख) को चाहता है, उसको हम उसमें से दे देते हैं, जितना हम जिसे देना चाहें। फिर हमने उसके लिए नरक को तैयार कर रखा है। जिसमें वह धिक्कारा हुआ तथा ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा। (पवित्र कुरआन-सूरे बनी इस्रराईल (१७) आयत (१८)-अनुवाद अब्दुर रहमान चाऊस)