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अध्याय 2 ,श्लोक 47



श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥47॥

कर्मणि एव अधिकारः मा फलेषु कदाचन । मा कर्म-फल हेतुः भूः मा ते सज्जस्तु अकर्मणि ।।४७।।

शब्दार्थ

( एरां) नि:संदेह (कर्मणि) अपने कर्तव्य के पालन करने का अधिकार तुम्हे है (फलेषु ) (किन्तु कार्य के) परिणाम ( पर तुम्हारा ) (कदाचन) कोई (नियंत्रण नहीं है) (मा) न तुम (कर्मफल) (अपने) कर्मों के परिणाम (का)। (हेतुः भू) अपने आपको कारण या करने वाला समझो। (मा) और ना (ते) तुम (संगम अस्तु ) ऐसे विचारधारा को अपनाओ जिसमें (अकर्माणि) अपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया जाता।

अनुवाद

नि:संदेह अपने कर्तव्य के पालन करने का अधिकार तुम्हे है। (किन्तु कार्य के) परिणाम (पर तुम्हारा) कोई (नियंत्रण नहीं है)। न तुम (अपने) कर्मों के परिणाम का अपने आप को कारण या करने वाला समझो। और ना तुम ऐसे विचारधारा को अपनाओ जिसमें अपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया जाता।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, क्या इंसान वह पा लेता है जो वह चाहे (अर्थात क्या इंसान जो चाहे वही सत्य होता है) वर्तमान दुनिया (इस धरती लोक) और परिणाम की दुनिया का (अन्य लोक) का मालिक तो ईश्वर ही है। (सूरे अन नज्म (५३) आयत २४/२५) अर्थात इस जीवन में और मृत्यु के बाद जो कुछ मिलेगा वह ईश्वर के इच्छा अनुसार ही मिलेगा।