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अध्याय 2 ,श्लोक 50



श्लोक

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥50॥

बुद्धियुक्तः जहाति इह उभेसृकृत-दुष्कृते । तस्मात् योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ।।५०।।

शब्दार्थ

( बुद्धियुक्तः) वह जिनका ईश्वर पर पक्का विश्वास है (वह केवल ईश्वर को प्रसन्न करने वाले कर्म करते हैं।) (सुकृतदुष्कृते) और पुण्य और पाप (उबे) दोनों विचार से (जहाति) मुक्त हो जाते हैं। (तस्मात् ) इस कारण (इह) इस पृथ्वी लोक में ही (योगाय) अपनी श्रद्धा को ईश्वर से जोड़े रखने में (युज्यस्व) लग जाओ (योगः ) (वह कार्य जो) ईश्वर से जोड़ दे। (कर्मसु ) वही कर्मों को करने की (कौशलम्) सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।

अनुवाद

वह जिनका ईश्वर पर पक्का विश्वास है ( वह केवल ईश्वर को प्रसन्न करने वाले कर्म करते हैं।) और पुण्य और पाप दोनों विचार से मुक्त हो जाते हैं। इस कारण इस पृथ्वी लोक में ही अपनी श्रद्धा को ईश्वर से जोड़े रखने में लग जाओ। (वह कार्य जो) ईश्वर से जोड़ दे, वही कर्मों को करने की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।

नोट

योग का शब्द कोश में ३८ अर्थ बताए गए है। उसमें एक है ईश्वर से जुड़ना और दुसरा है दूत। पढ़ीए नोट नं. N-७