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अध्याय 2 ,श्लोक 51



श्लोक

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः । जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥51॥

कर्मजम् बुद्धियुक्ताः हि फलम् त्यक्त्वा मनीषिणः । जन्मबन्ध विनिर्मुक्ताः पदम् गच्छन्ति अनामयम् ।।५१।।

शब्दार्थ

(मनीषिण) पवित्र धार्मिक व्यक्ति (बुद्धियुक्ताः) जिसका ईश्वर में दृढ़ विश्वास होता है वह (कर्मजम्) उसके कर्म से उत्पन्न होने वाले (फलम् फल) लाभ को (त्यक्त्वा) त्याग देता है। (हि) निसंदेह वह (जन्मबन्ध) नरक में बार बार जन्म लेने के बन्धन से (विनिर्मुक्ताः) मुक्त हो जाता है। (पदम) और स्वर्ग (गच्छन्ति) को पाता है। (अनामयम्) जहाँ कष्ट (दुर्गति) पीड़ा नहीं।

अनुवाद

पवित्र धार्मिक व्यक्ति जिसका ईश्वर में दृढ़ विश्वास होता है, वह उसके कर्म से उत्पन्न होने वाले लाभ को त्याग देता है। निसंदेह वह नरक में बार-बार जन्म लेने के बन्धन से मुक्त हो जाता है। और स्वर्ग को पाता है। जहाँ कष्ट पीड़ा नहीं ।

नोट

नरक में जब मनुष्य का शरीर दंड के कारण, जल कर या कट कर यातना के योग्य नहीं रहेगा तो ईश्वर उसे फिर से नया शरीर देगा ताकि दंड के अनुसार यातनाऐं निरन्तर दी जाती रहें। अर्थात मनुष्य बार-बार जन्म लेने के लिए बाध्य रहेगा। इस सम्बन्ध में पवित्र कुरआन में निम्नलिखित आयात है। जिन लोगों ने हमारी आयतों का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोकेंगे। जब भी उनकी खालें जल जाएँगी। तो हम उन्हें दुसरी खालों में बदल दिया करेंगे ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। नि:स्संदेह ईश्वर प्रभुत्वशाली, तत्त्वदर्शी है। (सूरे अन-निसा (४), आयत नं. ५६ अनुवाद मो. फारुक खाँ)