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अध्याय 2 ,श्लोक 52



श्लोक

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति । तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥52॥

यदा मोह कलिलम् बुद्धिः व्यतितरिष्यति । तदा गन्ता असि निर्वेदम् श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ।। ५२।।

शब्दार्थ

(यदा) (हे अर्जुन) जब (बुद्धिः) (तुम्हारी) बुद्धि समझ (मोह) (धन और शक्ति प्राप्त करने के) मोह के ( कलिलम्) दलदल से (व्यतितरिष्यति) बाहर आ जाए (तदा) तब तुम (श्रोतव्यस्य) धन और शक्ति की प्राप्ती के विषय में जो कुछ सुना। (च श्रुतुस्थ) और जो कुछ सुनोगे (निर्वेदम्) उससे तुम प्रभावित नहीं (गन्ता असि) हो जाओगे।

अनुवाद

हे अर्जुन, जब (तुम्हारी) बुद्धि (धन और शक्ति प्राप्त करने के) मोह के दलदल से बाहर आ जाए, तब तुम धन और शक्ति की प्राप्ती के विषय में जो कुछ सुना, और जो कुछ सुनोगे उससे तुम प्रभावित नहीं हो जाओगे।