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अध्याय 2 ,श्लोक 53



श्लोक

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ||53||

श्रुति विप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधौ अचला बुद्धिः यो गम् अवाप्स्यसि ।।५३ ।।

शब्दार्थ

(यदा) जब (ते) तुम (श्रुति) लोगों की (मोह माया की) बातों से (विप्रतिपन्ना) प्रभावित न होने लगो (बुद्धिः) (तब तुम्हारी) बुद्धि (अवाप्यस्यसि) उस अवस्था को प्राप्त होगी। (निश्चला) स्थिर (अचला) दृढ संकल्प (कृत निश्चय ) (योगम् ) ईश्वर की याद से जुडी (और) (समाधौ) (ईश्वर की प्रार्थना और उसकी कृपा से ) संतुष्ट (स्थास्यति) रहती है।

अनुवाद

जब तुम लोगों की ( मोह माया की) बातों से प्रभावित न होने लगो, (तब तुम्हारी ) बुद्धि उस अवस्था को प्राप्त होगी जो स्थिर, दृढ संकल्प और ईश्वर की याद से जुड़ी, (और) (ईश्वर की प्रार्थना और उसकी कृपा से ) संतुष्ट रहती है ।