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अध्याय 2 ,श्लोक 55



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान्पार्थ मनोगतान् । आत्मयेवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥55॥

श्री भगवान उवाच, प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान् । आत्मनि एवं आत्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञः तदा उच्यते ।।५५।।

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा (पार्थ) हे अर्जुन ( यदा) जब मनुष्य (आत्मनि) अपनी इच्छा से (सर्वान) उन सब (कामान्) कामनाओं को (प्रजहाति) छोड़ देता है (मनः गतान्) जो उसके मन में आते हैं (आत्मना) और अपने आपमें ( एवं) ही (तुष्ट) संतुष्ट रहता है। (तदा) तब ऐसे मनुष्य को ( स्थितप्रज्ञ ) (ईश्वर की श्रद्धा पर) स्थिर बुद्धिवाला (उच्यते) कहा जाता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, हे अर्जुन! जब मनुष्य अपनी इच्छा से उन सब कामनाओं को छोड़ देता है जो उसके मन में आते हैं और अपने आपमें ही संतुष्ट रहता है । तब ऐसे मनुष्य को ( ईश्वर की श्रद्धा पर) स्थिर बुद्धिवाला कहा जाता है।