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अध्याय 2 ,श्लोक 61



श्लोक

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥61॥

तानि सर्वाणि संयम्य युक्तः आसीत् मत-परः । बशे हि यस्य इन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।। ६१ ।।

शब्दार्थ

(तानि) इन (सर्वाणि) सब (बलवान इच्छाओं को) (वशे) वश में करके (मत) अपने मन को (मत ) मुझ (परः) सबसे महान ईश्वर में ( युक्त) लगाए (आसीत) रखो (हि) (कियं की) नि:संदेह (यस्य ) जिसकी (इन्द्रियाणि) इच्छाऐं (संयम्य) वश में होगी (तेसय) उसी की (प्रज्ञा ) ईश्वर में श्रद्धा (प्रतिष्ठिता) स्थिर होंगी।

अनुवाद

इन सब बलवान इच्छाओं को वश में करके अपने मन को मुझ सबसे महान ईश्वर में लगाए रखो। निःसंदेह जिसकी इच्छाऐं वश में होंगी, उसी की ईश्वर में श्रद्धा स्थिर होंगी। मनुष्य के विनाश का आरम्भ कैसे होता हैं