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अध्याय 2 ,श्लोक 63



श्लोक

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥63।।

क्रोधात भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृति विभ्रमः स्मृति-भ्रंशात् बुद्धि-नाशः बुद्धि-नाशात् प्रणश्यति ।। ६३ ।।

शब्दार्थ

(क्रोधात्) क्रोध से ( सम्मोहः) मन मोहित (भवति) हो जाता है (मन वश में नहीं रहता) (सम्मोहात्) मन के सम्मोहित होने से (स्मृति) सोच समझ (विभ्रम ) उलझ जाती है । ( स्मृति भ्रंशात ) सोच समझ के उलझने से ( बुद्धि नाश) बुद्धि का नाश होता है। (बुद्धि-नाशत् ) बुद्धि के नाश होने से मनुष्य (प्रणश्यति) बर्बाद हो जाता है।

अनुवाद

क्रोध से मन मोहित हो जाता है (मन वश में नहीं रहता ) | मन के सम्मोहित होने से सोच समझ उलझ जाती है। सोच समझ के उलझने से बुद्धि का नाश होता है। बुद्धि के नाश होने से मनुष्य बर्बाद हो जाता है।