Home Chapters About



अध्याय 2 ,श्लोक 65



श्लोक

प्रसादे सर्वदः खानां हानिरस्योपजायते । प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ।।65।।

प्रसादे सर्व दुःखानाम् हानिः अस्य उपजायते । प्रसन्न चेतसः हि आशु बुद्धिः परि अवतिष्ठते ।। ६५ ।।

शब्दार्थ

(प्रसादे) ईश्वर की कृपा पाने वाला मनुष्य (सर्व) सब प्रकार के (दुःखानाम्) दुःख और (हानिः) हानि होने पर भी ( अस्य) उसका (चेतसः) मन ( प्रसन्न) शांत (उपजायते) रहता है। (हि) नि:संदेह (बुद्धिः) ऐसे पुरुष की बुद्धि (आशु ) • बहुत जल्द ही ( परि अवतिष्ठते) ईश्वर की श्रद्धा पर स्थिर हो जाएगी।

अनुवाद

ईश्वर की कृपा पाने वाला मनुष्य, सब प्रकार के दुःख और हानि होने पर भी उसका मन शांत रहता है। निःसंदेह ऐसे पुरुष की बुद्धि बहुत जल्द ही ईश्वर की श्रद्धा पर स्थिर हो जाएगी।