Home Chapters About



अध्याय 2 ,श्लोक 70



श्लोक

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥70॥

आपूर्यमाणम् अचल-प्रतिष्ठिम् समुद्रम् आपः प्रविशन्ति यद्वत् । तद्वत् कामाः यम् प्रविशन्ति सर्वेसः शान्तिम् आप्नोति न काम-कामी ।। ७० ।।

शब्दार्थ

(यद्वत) जिस प्रकार (आप) नदियों का पानी (आपुर्यमाणाम्) चारों ओर से (समुद्रम्) समुद्र में (प्रविशन्ति) गिरता (किन्तु) (अचल प्रतिष्ठिम) (समुद्र) शान्त रहता है। (तद्वत्) इसी प्रकार (सः) वह सज्जन (जिसने अपनी इच्छाओं को वश में किया है।) (यम्) उसके (मन में) (सर्वे) सर्व प्रकार की (कामा) इच्छाएं

अनुवाद

जिस प्रकार नदियों का पानी चारों ओर से समुद्र में गिरता (किन्तु) (समुद्र) शान्त रहता है। इसी प्रकार वह सज्जन ( जिसने अपनी इच्छाओं को

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, यदि मनुष्य को धन से भरा दो वन (जंगल) मिल जाए तो भी वह तिसरे वन की इच्छा करेगा। उसकी इच्छा का पेट केवल कबर की मिट्टी ही भर सकती है। (बुखारी ६४३६)