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अध्याय 3 ,श्लोक 10



श्लोक

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥10॥

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरा उवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वम् एषः वः अस्तु इष्ट काम-धुक्
।।१०।।

शब्दार्थ

(पूरा) सृष्टी के रचना के काल में (आदिकाल में) (प्रजापति) ईश्वर ने (प्रजा) मनुष्य ( की रचना) (सह यज्ञाः) ईश्वर की प्रार्थना के लिए की (उवाच) (और मनुष्य को) कहा (अनेन) उस ईश्वर की प्रार्थना से तुम्हारी (प्रसविष्यध्वम्) समृद्धि (उन्नती) बढ़ेगी (एषः) उस ईश्वर की प्रार्थना से (वः) तुम लोग को (इष्ट काम-धुक) आवश्यक सामग्री प्राप्त (अहतु) होगी। (यज्ञ का अर्थ नोट नं. N - १३ में देखे। )

अनुवाद

सृष्टी के रचना के काल में (आदिकाल में) ईश्वर ने मनुष्य (की रचना) ईश्वर की प्रार्थना के लिए की। ( और मनुष्य को) कहा, "ईश्वर की प्रार्थना से तुम्हारी समृद्धि (उन्नती) बढ़ेगी, ईश्वर की प्रार्थना से तुम लोग को आवश्यक सामग्री प्राप्त होगी।”

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, "और यदि ये ‘तौरात' और 'इंजील' को और जो कुछ इनके ईश्वर की ओर से इन पर अवतरित किया गया है, कायम रखते (अनुसरण करते), तो इन्हें खाने को मिलता ऊपर से भी और पाँव के नीचे से भी। इनमें एक समुदाय सीधे रास्ते पर चलने वाला है परन्तु इनमें बहुत से ऐसे हैं कि जो कुछ करते हैं, वह बहुत बुरा है।” (पवित्र कुरआन, सूरे अल माइदह-५, आयत ६६) (तौरात यहुदी समुदाय की अवतरित ग्रंथ है, और इंजील इसाई समुदाय की । इस आयत का अर्थ है कि जो अवतरित ग्रंथो का पालन करेगा अत्यंत सुखी रहेगा।) ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, “मैने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी स्तुति (बन्दगी) करें।” (पवित्र कुरआन, सूरे अज़ जारीयात ५१, आयत-५६)