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अध्याय 3 ,श्लोक 12



श्लोक

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः । तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ।।12।।

इष्टान् भोगान् हि वः देवाः दास्यन्ते यज्ञ भाविताः । तैः दत्तान् अप्रदाय एभ्यः यः भुङङ्क्ते स्तेनः एव सः ।।१२।।

शब्दार्थ

(नालंदा विशाल शब्द सागर पेज नं. ७९९.) (यज्ञ भाविताः) ईश्वर की प्रार्थना करते रहने से (देवा) देवता (वः) तुम्हें (हि) नि:संदेह (भोगान् ) जीवित रहने के लिए जो वस्तु (इष्ठान) चाहिए (वह) (दास्यन्ते) देते रहेंगे। (तै) (किन्तु) उन देवताओं द्वारा (दत्तान) दी हुई सामग्री को (यो) जो (एभ्य) दूसरों को (अप्रदाय) दिये बिना सेवा में लाएगा (एव) नि:संदेह (सः) वह (स्तेन) चोर है।

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना करते रहने से देवता तुम्हें नि:संदेह जीवित रहने के लिए जो 'वस्तु' चाहिए (वह) देते रहेंगे। (किन्तु) उन देवताओं द्वारा दी हुई सामग्री को जो दूसरों को दिये बिना सेवा में लाएगा नि:संदेह वह चोर है।

नोट

पवित्र कुरआन में लिखा है कि फरिश्तें ईश्वर के आदेश अनुसार काम करते हैं, इस विषय में यह आयत है। “फिर फरिश्ते (ईश्वरीय आदेशों के अनुसार) संसार के कार्यों (कामों) का प्रबंध करते है।” (पवित्र कुरआन ७९.५)