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अध्याय 3 ,श्लोक 14



श्लोक

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥14॥

अन्नात भवन्ति भूतानि पर्जन्यात् अन्न सम्भवः । यज्ञात् भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्म समुद्भवः ।।१४।।

शब्दार्थ

( भूतानि) सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर (अन्नात् ) अन्न से (भवन्ति) उत्पन्न होते हैं (जीवित रहते हैं (अन्न) अन्न (सम्भवः) उत्पति ( पर्जन्यान) वर्षा से होती है। (पर्जन्य) वर्षा ( भवति) होती है। ( यज्ञात) ईश्वर की आज्ञा और कृपा से (कर्म) (और ईश्वर की आज्ञा और कृपा मनुष्य के) कर्म (समुद्भवः) । (के अनुसार) ) होते हैं। (सम्भवः का अर्थ उत्पति है, यह अर्थ याद रखें। श्लोक नं. ४.८ में इसका उपयोग होगा।)

अनुवाद

सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर अन्न से उत्पन्न होते हैं ( जीवित रहते हैं)। अन्न की उत्पति वर्षा से होती है, वर्षा होती है ईश्वर की आज्ञा और कृपा से । (और ईश्वर की आज्ञा और कृपा मनुष्य के) कर्म (के अनुसार) होते है।