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अध्याय 3 ,श्लोक 15



श्लोक

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् । तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥15॥

कर्म ब्रह्म उद्भवम् विद्धि ब्रह्म अक्षर समुद्भवम् । तस्मात् सर्वगतम् ब्रह्म नित्यम् यज्ञे प्रतिष्ठितम् ।।१५।।

शब्दार्थ

(विद्धि) (यह सत्य तुम्हें) जानना चाहिए कि (कर्म) सत्कर्म (ब्रह्म) वेदों से ( उद्भवम् ) उत्पन्न होते हैं। (अक्षर) निराकार ईश्वर (से) ( समुदभवम् ) वेद अस्तित्व में आए हैं (तस्मात ) इस कारण ( तुम्हें जानना चाहिए कि ईश्वर की कृपादृष्टी) (सर्वगतम्) हर स्थान पर उपस्थित रहने वाला ईश्वर और उसकी कृपा (प्रतिष्ठितम्) वहीं होती है। (नित्यम यज्ञ) जहाँ हमेशा कर्तव्य का पालन होता है (या ईश्वर की प्रार्थना होती है या वेदों में लिखे आदेश माने जाते है)। (यज्ञ का अर्थ कर्तव्य पालन लिखा है। देखीए नोट नं.N - १३)

अनुवाद

(यह सत्य तुम्हें) जानना चाहिए कि सत्कर्म वेदों से उत्पन्न होते हैं। निराकार ईश्वर (से) वेद अस्तित्व में आए हैं। इस कारण (तुम्हें जानना चाहिए की ईश्वर की कृपादृष्टी) हर स्थान पर उपस्थित रहने वाला ईश्वर और उसकी कृपा वहीं होती है जहाँ हमेशा कर्तव्य का पालन होता है, (या ईश्वर की प्रार्थना होती है, या वेदों में लिखे आदेश माने जाते है)।

नोट

(हजरत नूह / विवस्वत मनु ने कहा) अपने ईश्वर में क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है। वह बादल भेजेगा तुम पर खुब बरसने वाला। और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा। (पवित्र कुरआन, सुरे नूह ७१, आयत १०-१२)