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अध्याय 3 ,श्लोक 19



श्लोक

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर । असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ॥19॥

तस्मात् असक्तः सततम् कार्यम् कर्म समाचर। असक्तः हि आचरन् कर्म परम् आप्नोति पुरुषः ।।१९।।

शब्दार्थ

(तस्मात् ) इसलिए (सततम् ) निरन्तर (असक्तः) निःस्वार्थ होकर (कर्म) सत्कर्म को (कार्यम) अपना कर्तव्य समझ कर ( समाचर ) वेदों के आदेश अनुसार (करते रहो) (हि) नि:संदेह (असक्तः) नि:स्वार्थ (कर्म) कर्म (आचरन्) करता हुआ (पुरुषः) व्यक्ती ही (परम्) ईश्वर की कृपा को (आप्नोति) पाता है।

अनुवाद

इसलिए निरन्तर निःस्वार्थ होकर सत्कर्म को अपना कर्तव्य समझ कर वेदों के आदेश अनुसार (करते रहो)। नि:संदेह नि:स्वार्थ कर्म करता हुआ व्यक्ती ही ईश्वर की कृपा को पाता है।

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, “संसार के सभी प्राणी ईश्वर के परिवार के समान हैं। ईश्वर उस व्यक्ती से प्रेम करता है जो उसके परिवार की सेवा करता है। (मिश्कात अल मसाब-३:१३९२)