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अध्याय 3 ,श्लोक 22



श्लोक

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन । नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥22॥

न मे पार्थ अस्ति कर्तव्यम् त्रिषु लोकेषु किश्चन न अवाप्तम् अवाप्तव्यम् वर्ते एव च कर्मणि ||२२||

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन (त्रिषु) तिनों (लोकेषु) लोकों (में) (मे) मुझ पर (किश्चन) कोई भी (कर्तव्यम्) अनिवार्य कर्म (न) नहीं (अस्ति) है (न अनवाप्तम्) न प्राप्त करने योग्य ( वस्तु ) (अवाप्तव्यम्) (मुझे) अप्राप्त है। (अर्थात मेरे पास सब कुछ है।) ( एव च ) फिर भी (कर्मणि) (मैं प्राणियों के सुरक्षा और पालन पोषण) के काम में (वर्ते) लगा हूँ।

अनुवाद

हे अर्जुन तीनों लोकों में मुझ पर कोई भी अनिवार्य कर्म नहीं है। न प्राप्त करने योग्य (वस्तु) मुझे अप्राप्त है। (अर्थात मेरे पास सब कुछ है।) फिर भी (मैं प्राणियों के सुरक्षा और पालन पोषण) के काम में लगा हूँ।