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अध्याय 3 ,श्लोक 28



श्लोक

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥28॥

तत्ववित् तु महाबाहोगुणकर्म विभागयोः । गुणा: गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ||२८||

शब्दार्थ

(महाबाहो) हे महाबाहो (अर्जुन) (तत्ववित्) तत्वदर्शी पुरुष (ज्ञानी) (कर्म) कर्म (गुण) (जो ईश्वर के बनाए हुए सात्विक, रजो और तमो गुण ( से प्रेरित होकर किए जाते है), (विभागयोः) उनके अंतर को समझता है। (गुणेषु) (और तीनों) गुणों में (गुणाः) सर्वश्रेष्ठ गुण (सात्वीक गुण) (वर्तन्ते) (ही) अपनाता है। (इति) इस तरह के (मत्वा) दृष्टीकोण से वह (सज्जते) (पाप कर्मों में) फंसता (न) नहीं है ।

अनुवाद

हे महाबाहो (अर्जुन)! तत्वदर्शी पुरुष (ज्ञानी) कर्म (जो ईश्वर के बनाए हुए सात्विक, रजो और तमो) गुण ( से प्रेरित होकर किए जाते हैं), उनके अंतर को समझता है। (और तीनों) गुणों में सर्वश्रेष्ठ गुण (सात्वीक गुण) ही अपनाता है। इस तरह के दृष्टीकोण से वह (पाप कर्मों में) फंसता नहीं है ।