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अध्याय 3 ,श्लोक 29



श्लोक

प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु । तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥29॥

प्रकृतेः गुण सम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु । तान् अकृत्वविदः मन्दान् कृत्व-वित् विचालयेत् ।।२९ ।।

शब्दार्थ

(प्रकृतेः) (ईश्वर ने) प्राकृतिक रूप से ( गुण ) (मनुष्य को जो) गुण (कौशल) दिये है। (सम्भूढाः) मूर्ख जन (उसे अपनी क्षमता मानते हैं) (गुणकर्मसु) और उन गुणों से उस के अच्छे फल (धन संपत्ती इत्यादी) कमाने के ( सज्जन्ते) लत में लगे रहते हैं (और मानव कल्याण के कर्म नहीं करते ) ( कृत्व- वित्) ज्ञानी पुरुषों को चाहिए कि (तान ) इन (अकृत्वविदः) अज्ञानी ( मन्दन ) और ना समझ लोगों को ( विचानमयते) विचलित (गुमराह) न होने दें।

अनुवाद

(ईश्वर ने) प्राकृतिक रुप से (मनुष्य को जो) गुण (बुद्धि, कौशल) दिये हैं। मूर्ख जन ( उसे अपनी क्षमता मानते हैं) और उन गुणों से उसके अच्छे फल (धन संपत्ती इत्यादि) कमाने के धुन में लगे रहते हैं। (और मानव कल्याण के कर्म नहीं करते )। ज्ञानी पुरुषों को चाहिए कि इन अज्ञानी और ना समझ लोगों को विचलित (गुमराह ) न होने दें।

नोट

कारुन नाम का व्यक्ति पैगंबर मूसा की जाति में से था। ईश्वर ने उसे बहुत धन दिया था, किन्तु वह कहता था कि यह धन तो मुझे केवल ज्ञान के कारण दिया गया है। जो मुझे प्राप्त है। उसके अहंकार के कारण ईश्वर ने उसे और उसके घर को धरती में धंसा दिया। (पवित्र कुरआन, सूरे अल कसस, २८, आयत नं. ७६/८२ का सारांश)