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अध्याय 3 ,श्लोक 32



श्लोक

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥32॥

येतु एतत् अभ्यसूयन्तः न अनुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्व-ज्ञान विमूढान् तान् विद्धि नष्टान् अचेतसः ।।३२।।

शब्दार्थ

(तु) परन्तु (ये) जो मनुष्य (मे) मेरे (मतम् ) आदेशों पर (न) नहीं (अनुतिष्ठन्ति) चलते हैं। (अभ्यसूयन्तः) और उनकी आलोचना करते हैं। (तान) उन लोगों को (सर्व) सम्पूर्ण (ज्ञान) ज्ञानों में (विमूढान) अज्ञानी (नष्टान) पूरी तरह बर्बाद (अचेतस) (और) अविवेकी (ईश्वर को न पहचानने वाला मनुष्य) (विद्धि) जानो।

अनुवाद

परन्तु जो मनुष्य मेरे आदेशों पर नहीं चलते हैं। और उनकी आलोचना करते है। उन लोगों को सम्पूर्ण ज्ञानों में अज्ञानी, पूरी तरह बर्बाद (और) अविवेकी (ईश्वर को न पहचानने वाला मनुष्य) जानो।