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अध्याय 3 ,श्लोक 33



श्लोक

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥33॥

सदृशम् चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेः ज्ञान-वान अपि । प्रकृतिम् यान्ति भूतानि निग्रहः किम् करिष्यति ।। ३३ ।।

शब्दार्थ

(ज्ञानवान) (एक) ज्ञानी पुरुष (स्वस्याः) उसके अपने (प्रकृतेः) स्वभाव के (सदृशम्) अनुसार (चेष्टते) व्यवहार करता है। (असि) इसी प्रकार ( भूतानि) सर्व प्राणी ( प्रकृतिम्) अपने-अपने स्वभाव के (यान्ति) अनुसार व्यवहार करते हैं। (किम्) तो किस प्रकार (करिष्यति) प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार किए गए कर्मों को (निग्रहः) रोका जा सकता है।

अनुवाद

(एक) ज्ञानी पुरुष उसके अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार करता है। इसी प्रकार सर्व प्राणी अपने-अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार करते हैं। तो किस प्रकार प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार किए गए कर्मों को रोका जा सकता है।