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अध्याय 3 ,श्लोक 9



श्लोक

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः । तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंग: समाचर ॥9॥

यज्ञ-अर्थात् कर्मणः अन्यत्र लोकः अयम् कर्म बन्धनः । तत् अर्थम् कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ।। ९ ।।

शब्दार्थ

(कौन्तेय) हे अर्जुन ( समाचार ) ( वेदों में) लिखे आदेश (को जानो) (तत्) उस ईश्वर (अर्थम) के लिए (मुक्तसङ्गः) संगम से मुक्त होकर (कर्म) कर्म करो (कर्मण) तुम्हारे कर्म (यज्ञ) ईश्वर को प्रसन्न करने (अर्थात) के लिए हो (अन्यत्र) अन्यथा (अथम्) इस (लोक) संसार (में) (कर्म बन्धन) कर्मों से बंधे रहोगे। (अनिवार्य कर्तव्य पुरे नहीं होंगे)

अनुवाद

हे अर्जुन! (वेदों में) लिखे आदेश (को जानो)। उस ईश्वर के लिए संगम से मुक्त होकर कर्म करो। तुम्हारे कर्म ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए हो अन्यथा इस संसार (में) कर्मों से बंधे रहोगे। (अनिवार्य कर्तव्य पूरे नहीं होंगे)

नोट

संगम : 'संगम' के नालन्दा विशाल शब्द कोश में चार अर्थ है। (पेज नं. १३७३) १) सम्मेलन २) वह स्थान जहाँ दो नदियाँ मिलती हैं। ३) साथ, सोहबत ४) दो या अधिक वस्तुओं का एक साथ मिलना। जब ग्रंथों में प्रार्थना के सम्बंध में इस शब्द का उपयोग होता है तो इसका अर्थ है ईश्वर की प्रार्थना के साथ किसी और की भी पूजा करना। इससे भगवद् गीता में १९ बार मना किया गया है। अधिक जानकारी के लिए नोट नं. N-6 पढ़िए। पवित्र कुरआन में ईश्वर ने पैगम्बर मोहम्मद साहब (स.) से कहा, (हे पैगम्बर ऐसा कहो की) “यदि मैं अपने ईश्वर की आज्ञा न मानूं तो मुझे एक बड़े दिन (प्रलय के दिन) की यातना का भय है। कहो, मैं तो ईश्वर की प्रार्थना करता हूँ, उसी के लिए धर्म को शुद्ध करते हुए।” (पवित्र कुरआन, सूरे अज जुमर-३९, आयत-१३-१४)