Home Chapters About



अध्याय 4 ,श्लोक 15



श्लोक

एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः । कुरु कर्मैव तस्मात्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम् ॥15॥

एराम् ज्ञात्वा कृतम् कर्म पूर्वः अपि मुमुक्षुभिः । कुरु कर्म एव तस्मात् त्वम् पूर्वेः पूर्व-तरम् कृतम् ।।१५।।

शब्दार्थ

(पूर्वे) पूर्वकाल के (मुमुक्षुभिः) मोक्ष चाहने वालों ने (अपि) भी ( एवम् ) इस प्रकार (ज्ञात्वा) (नि:स्वार्थ कर्म के प्रणाली को) जानकर (कर्म) कर्म (कृतम्) किये हैं। (तस्मात) इसलिए (त्वम्) तुम (भी) (पूर्वे) पूर्वजों के द्वारा (पूर्वतरम्) सदा से (कृतम्) किए जाने वाले (कर्म) कर्मों को (एवं) ही (उन्हीं की तरह नि:स्वार्थ) (कुरु) करो।

अनुवाद

पूर्वकाल के मोक्ष चाहने वालों ने भी इस प्रकार (निःस्वार्थ कर्म के प्रणाली को) जानकर कर्म किये हैं। इसलिए तुम (भी) पूर्वजों के द्वारा सदा से किए जाने वाले कर्मों को ही (उन्हीं की तरह निःस्वार्थ) करो।