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अध्याय 4 ,श्लोक 17



श्लोक

कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः । अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥17॥

कर्मणः हि अपि बोद्धव्यम् बोद्धव्यम् च विकर्मणः । अकर्मणः च बोद्धव्यम् गहना कर्मणः गतिः ।।१७।।

शब्दार्थ

(कर्मणः) सत्कर्म (धार्मिक कर्तव्य) (अपि) भी (बौद्धव्यम्) जानना चाहिए (च) और (विकर्मणः) वह कर्म जो नहीं करना है (बौद्धव्यम्) (उनको भी) जानना चाहिए (च) तथा (अकर्मणः) कर्म के न करने को भी ( बोद्धव्यम्) जानना चाहिए। (हि) क्योंकि (कर्मणः) कर्मों के (गहना ) ( तत्त्वज्ञान ) की गहराई मे (गतिः) पहुंचना कठिन है।

अनुवाद

सत्कर्म (धार्मिक कर्तव्य) भी जानना चाहिए। और वह कर्म जो नहीं करना है (उनको भी) जानना चाहिए तथा कर्म के न करने (को भी) जानना चाहिए। क्योंकि कर्मों के (तत्त्वज्ञान) की गहराई में पहुंचना कठिन है।