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अध्याय 4 ,श्लोक 18



श्लोक

कर्मण्य कर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः । स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥18॥

कर्मणि अकर्म यः पश्येत् अकर्मणि च कर्म यः । सः बुद्धिमान् मनुष्येषु सः युक्तः कृत्स्न-कर्म-कृत् ।।१८।।

शब्दार्थ

(यः) जो मनुष्य (कर्मणि) कर्म करने में (अकर्म) कर्म ना करना (पश्यते) देखता है (च) और (यः) जो (अकर्मणि) कर्म ना करने मे (कर्म) कर्म करना देखता है। (सः) वह (मनुष्येषु) मनुष्यों में (बुद्धिमान्) बुद्धिमान है। (सः) वह ( कृत्सकर्म) सभी सत्कर्म (कृत) करने में (युक्त) संयुक्त है (लगा हुआ है) ।

अनुवाद

जो मनुष्य कर्म करने में कर्म ना करना देखता है । और जो कर्म ना करने में कर्म करना देखता है। वह मनुष्यों में बुद्धिमान है। वह सभी सत्कर्म करने में संयुक्त है (लगा हुआ है)।

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, हर काम को अच्छे तरीके से करने का प्रयास करो। किन्तु परिणाम यदि अपेक्षा के विपरीत हो तो ऐसा न कहो कि यदि मैं ऐसा करता तो ऐसा होता। बल्कि ऐसा कहो कि जो हुआ वह ईश्वर की इच्छा थी। (हदीस) (अर्थात जो होता है ईश्वर के इच्छा के अनुसार ही होता है।)