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अध्याय 4 ,श्लोक 28



श्लोक

द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे । स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥28॥

द्रव्य-यज्ञाः तपः-यज्ञाः योग-यज्ञाः तथा अपरे। स्वाध्याय ज्ञान-यज्ञाः च यतयः संशित-व्रताः ||२८||

शब्दार्थ

(अपरे) कुछ लोग (ईश्वर को प्रसन्न करने ) (द्रव्य-यज्ञा) धन दान करते हैं। (तपयज्ञा) कुछ लोग तप करते है। (योग यज्ञा) कुछ लोग ध्यान लगाकर ईश्वर से जुड़ते हैं। (स्वाध्याय) कुछ लोग वेदों का अध्ययन करते हैं। (ज्ञान यज्ञा) और ज्ञान प्राप्त करके ईश्वर को प्रसन्न करते हैं। (च) और कुछ लोग (यतयः) पुरा प्रयास करते हैं कि (संशित) उन्होंने जो ईश्वर को वचन दिया है, (व्रताः) वह पूरा करें। (व्रत पूरा करें।)

अनुवाद

कुछ लोग (ईश्वर को प्रसन्न करने ) धन दान करते हैं। कुछ लोग तप करते हैं। कुछ लोग ध्यान लगाकर ईश्वर से जुड़ते हैं। कुछ लोग वेदों का अध्ययन करते हैं। तथा ज्ञान प्राप्त करके ईश्वर को प्रसन्न करते हैं। तथा कुछ लोग पूरा प्रयास करते हैं कि उन्होंने जो ईश्वर को वचन दिया है, वह पूरा करें। (व्रत पूरा करें।)