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अध्याय 4 ,श्लोक 41



श्लोक

योगसन्नयस्तकर्माणं ज्ञानसञ्निसंशयम् । आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥41॥

योग संन्यस्त कर्माणम् ज्ञान सछिन्न संशयम् । आत्म-वन्तम् न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।। ४१ ।।

शब्दार्थ

(धनंजय) हे अर्जुन! (योग) जो ईश्वर से जुड़ने वाली प्रार्थना करता है। (कर्मणाम् ) जो अपने सत्कर्मों (के फल को) (संन्यस्त ) छोड़ देता है । (ज्ञान) जो ज्ञान के प्रकाश से ( संशयम्) अपने शक (संदेह) को ( सदिच्छन्न) दूर करता है। (आत्म-वन्तम्) ईश्वर में दृढ़ श्रद्धा वाला ऐसा व्यक्ति (कर्माणि निबध्नन्ति) कर्मों से बंधा नहीं रहता।

अनुवाद

हे अर्जुन! जो ईश्वर से जुड़ने वाली प्रार्थना करता है, जो अपने सत्कर्मों (के फल को) छोड़ देता है, और जो ज्ञान के प्रकाश से अपने शक को दूर करता है और ईश्वर में दृढ़ श्रद्धा वाला ऐसा व्यक्ति कर्मों से बंधा नहीं रहता।

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, मेरे अनुयायियों में से सत्तर हजार अनुयायी बिना कर्मों का ईश्वर को हिसाब दिए स्वर्ग में जाऐंगे। यह वह लोग हैं जिनका ईश्वर में दृढ विश्वास है। (हदीस मुस्लिम, अहमद) ऐसी ही शिक्षा श्लोक नं. ४.४९ में है। जो गुण श्लोक नं. ४.४१ में बताए गए हैं, ऐसे व्यक्ति को उसके कर्म स्वर्ग में जाने से नहीं बंधेगे या रोकेंगे। (कर्मों से न बंधन के दो अर्थ हो सकते हैं) १) उसके सभी अनिवार्य कर्तव्य पूरे हो जाते हैं। और वह कर्म के बंधन से छूट जाता है। २) स्वर्ग में जाने के पहले जब कर्मों की जांच होगी, तब उसके कोई कर्म उसे नहीं बंधेगे। वह सफलतापूर्वक अपना कर्मों की जांच करवाकर स्वर्ग में प्रवेश करेगा। इस श्लोक को अच्छी तरह समझने के लिए नोट नं. N-11 का अध्ययन करें।