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अध्याय 4 ,श्लोक 7



श्लोक

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि भवति भारत । अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानम् सृजामि अहम् ।।७।।

शब्दार्थ

(भारत) हे अर्जुन! (हि) नि:संदेह (यदा यदा) जब-जब (धर्मस्य ) धर्म में (ग्लानि) गिरावट ( भवति) होने लगती है। (अधर्मस्य) और अधर्म (अभ्युत्थानम्) बढ़ने लगता है। (तदा) तब तब (अहम् ) मैं (आत्मानम्) खुद (सूजामि) (दिव्य ज्ञान) प्रदान करता हूँ।

अनुवाद

हे अर्जुन! निःसंदेह जब-जब धर्म में गिरावट होने लगती है। और अधर्म बढ़ने लगता है। तब मैं तब मैं खुद (दिव्य ज्ञान) प्रदान करता हूँ। (नोट- यह पवित्र पुस्तक 'भगवद् गीता' ईश्वर का प्रदान किया हुआ दिव्य ज्ञान है।)

नोट

सृजन शब्द का अर्थ नालन्द विशाल शब्द कोश (पेज नं. १४१६) में निम्नलिखित है। १. कोई वस्तु बनाकर तैयार करना। २. सृष्टी का उत्पन्न होना। ३. कोई वस्तु चलाना या छोड़ना। इस कारण श्लोक में सृजामि का अर्थ हमने दिव्य ज्ञान का देना या प्रदान करना लिखा है। सृजामि का अर्थ किसी भी शब्द कोश में अवतार लेना नहीं है।