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अध्याय 4 ,श्लोक 9



श्लोक

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः । त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥9॥

जन्म कर्म च मे दिव्यम् एवम् यः वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहम् पुनः जन्म न एति माम् एति सः अर्जुन ।। ९ ।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन (मे) मेरे (जन्म कर्म ) जन्म कर्म (दिव्यम्) दिव्य हैं (भौतिक नहीं हैं।) (एवम्) इस प्रकार (अर्थात मेरे जन्म कर्म सब दिव्य है और मैं मनुष्य की तरह धरती पर जन्म नहीं लेता) (यः) जो मनुष्य (तत्त्वतः) इस सत्य को (वेत्ति) जान लेता है (तो) (देहम्) (उसे) देह को (त्यक्त्वा) त्यागने के बाद (मृत्यु के बाद) (पुनः) (नर्क में) बार-बार (जन्म) जन्म (न एति) नहीं मिलता है (सः) उसे (माम् एति) मैं मिलता हूँ (अर्थ मेरी कृपादृष्टि और स्वर्ग मिलता है।)

अनुवाद

हे अर्जुन! मेरे जन्म कर्म दिव्य हैं (भौतिक नहीं है।) इस प्रकार (अर्थात मेरे जन्म कर्म सब दिव्य हैं और मैं मनुष्य की तरह धरती पर जन्म नहीं लेता) जो मनुष्य इस सत्य को जान लेता है (तो उसे) देह को त्यागने के बाद (मृत्यु के बाद) (नर्क में) बार-बार जन्म नहीं मिलता है। उसे मैं मिलता हूँ। (अर्थ मेरी कृपादृष्टि और स्वर्ग मिलता है।)

नोट

बार बार जन्म लेने का अर्थ समझने के लिए नोट नं. N-19 पढ़िये।