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अध्याय 5 ,श्लोक 24



श्लोक

योऽन्तः सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥

यः अन्तः-सुखः अन्तः- आरामः तथा अन्तः ज्योतिः एव यः । सः योगी ब्रह्म-निर्वाणम् ब्रह्म-भूतः अधिगच्छति ।। २४॥

शब्दार्थ

(यः) वह (जो) (अन्तःसुख) मन के भीतर से सुखी है। (अन्तः आराम) जो अंदर से संतुष्ट है (तथा) और (अन्तः ज्योति) जो अंदर से दिव्य ज्ञान से प्रकाशित है। (एव) वह (व्यक्ति) (योगी) ईश्वर की प्रार्थना करने वाला है। (भूत) भूतकाल में ( मृत्यु के पश्चात वह ) (ब्रह्म निर्वाणम्) ईश्वर के शांति के स्थान (स्वर्ग) (अधिगच्छति) प्राप्त कर लेगा।

अनुवाद

वह (जो) मन के भीतर से सुखी है। जो अंदर से संतुष्ट है। और जो अंदर से दिव्य ज्ञान से प्रकाशित है। वह (व्यक्ति) ईश्वर की प्रार्थना करने वाला है। भूतकाल में (मृत्यु के पश्चात वह) ईश्वर के शांति के स्थान (स्वर्ग) को प्राप्त कर लेगा।