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अध्याय 5 ,श्लोक 26



श्लोक

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् । अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26||

काम क्रोध विमुक्तानाम् यतीनाम् यत-चेतसाम् । अभितः ब्रह्म-निर्वाणम् वर्तते विदित-आत्मनाम् ।।२६।।

शब्दार्थ

( यतीनाम) पवित्र और पूज्य व्यक्ति (जिसने ) (काम) भावना (क्रोध) क्रोध काम (विमुक्तानाम्) मुक्ति पा लिया है (अपने इन भावनाओं को (अभितः) सभी ओर से वश में कर लिया है) (यत-चेतसाम्) और जिसने अपनी इच्छाओं को वश में रखा है। (विदित आत्मनाम्) और जिसने अपने आपको (अपने अस्तित्व में आने के कारण को) पहचान लिया है। (ब्रह्म निर्वाणम्) वह ईश्वर के स्वर्ग को (वर्तते) प्राप्त करेगा।

अनुवाद

पवित्र और पूज्य व्यक्ति (जिसने) काम भावना और क्रोध से मुक्ति पा लिया है ( अपने इन भावनाओं को सभी ओर से वश में कर लिया है)। और जिसने अपनी इच्छाओं को वश में रखा है। और जिसने अपने आपको (अपने अस्तित्व में आने के कारण को) पहचान लिया है। वह ईश्वर के स्वर्ग को प्राप्त करेगा। (नोट- मनुष्य के इस धरती पर जन्म लेने का उद्देश ईश्वर की प्रार्थना ही है।)

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी (उपासना) करें।” (पवित्र कुरआन, ५१.५६)