Home Chapters About



अध्याय 5 ,श्लोक 5



श्लोक

यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते । एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥5॥

यत् सांङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानम् तत् योगैः अपि गम्यते । एकम् सांङ्ख्यम् च योगम् च यः पश्यति सः पश्यति ।। ५ ।।

शब्दार्थ

(यत) जो (स्थानम्) आध्यात्मिक स्थान (सांख्यै) सन्यास योग को करने से ( प्राप्यते) मिलता है। (योगै) कर्म योग से (अपि) भी (तत्) वही ( गम्यते) आध्यात्मिक स्थान प्राप्त होता है। (यः) वह जो (सांख्यम्) सन्यास योग (च) और (योगम्) कर्म योग को (एकम्) एक जैसा ही ( पश्यति) देखता है (समझता है) (सः) वही (धार्मिक सत्य और तथ्य को सही दृष्टिकोण से) देखता है।

अनुवाद

(जो आध्यात्मिक स्थान) संन्यास योग को करने से मिलता है। कर्मयोग से भी वही आध्यात्मिक स्थान प्राप्त होता है। वह जो संन्यास योग और कर्म योग को एक जैसा ही देखता है (समझता है) वही (धार्मिक सत्य और तथ्य को सही दृष्टिकोण से) देखता है।