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अध्याय 6 ,श्लोक 16



श्लोक

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः । न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥16॥

न अति अश्नतः तु योगः अस्ति न च एकान्तम्
अनुश्नतः । न च अति स्वप्न शीलस्य जाग्रतः न एव च अर्जुन।।१६।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन! (तु) लेकिन ( एवं) सच तो यह है कि (योगः) भक्ति (न) न (अति) बहुत अधिक (अश्नतः) भोजन करने वाला कर सकता (अस्ति) है (च) और (न) न (एकान्तम् ) बिलकुल ( अनुश्नतः) भूखा रहने वाला कर सकता है (च) और (न) न (अति) बहुत अधिक (स्वप्नन-शीलस्य) सोने वाला कर सकता है (च) और (न) न ही (जाग्रतः) हर समय जागने वाला कर सकता है।

अनुवाद

हे अर्जुन! लेकिन सच तो यह है कि भक्ति न बहुत अधिक भोजन करने वाला कर सकता है। और न बिलकुल भूखा रहने वाला कर सकता है । और न बहुत अधिक सोने वाला कर सकता है। और न ही हर समय जागने वाला कर सकता है।