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अध्याय 6 ,श्लोक 19



श्लोक

यथा दीपो निवातस्थो नेंगते सोपमा स्मृता । योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥19॥

यथा दीपः निवात-स्थः न इड्ते सा उपमा स्मृता योगिनः यत-चित्तस्य युज्जतः योगम् आत्मनः ।।१९।।

शब्दार्थ

(स्मृता) ईश्वर याद दिला रहा है कि, (यथा) जिस तरह (निवात) बिना हवा के (स्थः) स्थान पर (रखा हुआ) (दीपः) दीप (इडगते) टिमटिमाता (न) नहीं ( सा उपमा) इसी तरह (योगिनः) उस भक्त का (जिसका) (चित्तस्य) मन (यत्) वश में है (और), (आत्मनः) और आत्मा (युञ्जत) ईश्वर की प्रार्थना में व्यस्त रहती है (योगम) वह ईश्वर की प्रार्थना (से डगमगाता नहीं ) ।

अनुवाद

ईश्वर याद दिला रहा है कि जिस तरह बिना हवा के स्थान पर (रखा हुआ) दीप टिमटिमाता नहीं। इसी तरह उस भक्त का (जिसका) मन वश में है (और), और आत्मा ईश्वर की प्रार्थना में व्यस्त रहती है। वह ईश्वर की प्रार्थना ( से डगमगाता नहीं ) ।