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अध्याय 6 ,श्लोक 22



श्लोक

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः । यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥22॥

यम् लळवा च अपरम् लाभम् मन्यते न अधिकम् ततः । यस्मिन् स्थितः न दुःखेन गुरुणा अपि विचाल्यते ।।२२।।

शब्दार्थ

(ला) (ईश्वर की ओर से शान्ति ) प्राप्त (यम्) होने के बाद (वह भक्त) (ततः) उस ईश्वर (अपरम्) के अतिरिक्त किसी और (शक्ति को) (अधिकम् ) अधिक (लाभम्) लाभ देने वाला (न) नहीं (मन्यते) मानता (यस्मिन्) उस (शान्त) (स्थितः) स्थिती ( के बाद वह भक्त) (गुरुणा अपि) बहुत बड़े (दुःखेन) कठिन समय में भी (विचाल्यते) डगमगाता (न) नहीं।

अनुवाद

( ईश्वर की ओर से शान्ति ) प्राप्त होने के बाद (वह भक्त) उस ईश्वर के अतिरिक्त किसी और (शक्ति को) अधिक लाभ देने वाला नहीं मानता। उस (शान्त) स्थिती (के बाद वह भक्त) बहुत बड़े कठिन समय में भी डगमगाता नहीं।