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अध्याय 6 ,श्लोक 23



श्लोक

तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्जितम्। स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥23॥

सः निश्चयेन योक्तव्यः योगः अनिर्विण्ण-चेतसा । तम् विद्यात् दुःख-संयोग वियोगम् योग-संज्ञितम् ।।२३।।

शब्दार्थ

(विधात) मनुष्य को जानना चाहिए कि (योग संज्ञितम्) एकाग्र होकर की जाने वाली ईश्वर की प्रार्थना (दुःख संयोग) कठिन परिस्थितियों में पड़ने से ( वियोगम् ) बचा लेती है (तम्) इसलिए (सः) उस (ईश्वर की) (योग) प्रार्थना को (अनिविण्ण चेतसा) एकाग्र मन (निश्चयेन) और दृढ़ता के साथ (योक्तव्यः) करना चाहिए।

अनुवाद

मनुष्य को जानना चाहिए कि एकाग्र होकर की जाने वाली ईश्वर की प्रार्थना कठिन परिस्थितियों में पड़ने से बचा लेती है। इसलिए उस (ईश्वर की) प्रार्थना को एकाग्र मन और दृढ़ता के साथ करना चाहिए।